Rafique Khan
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बांड स्क्रीम को असंवैधानिक करार दिया। 6 साल पुरानी इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम के जरिए चंदा लेने की प्रथा पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस तरह की प्रक्रिया और बॉन्ड के लिए तथाकथित गोपनीयता बनाए रखना पूरी तरह से असंवैधानिक है, अवैध है। इतना ही नहीं यह स्कीम सूचना के अधिकारों का भी उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की टीम ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया है। जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने की है। चीफ जस्टिस के साथ जस्टिस संजय मनोज मिश्रा, जस्टिस जे बी परडींवाला, जस्टिस संजीव खन्ना तथा जस्टिस बी गवाई शामिल रहे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस निर्णय पर मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कहा जाता है कि चीफ जस्टिस ने कहा, 'पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।' CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसे लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी। 2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखने के ठीक 4 दिन बाद 6 नवंबर को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी 29 ब्रांचों के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू किए थे। 6 नवंबर से 20 नवंबर तक इश्यू किए गए बॉन्ड्स में 1000 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा दिया गया।
क्या है पूरा मामला
रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
इन महत्वपूर्ण बिंदुओं से भी फैसले को समझें
@ राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
@ कंपनी एक्ट में संशोधन मनमाना और असंवैधानिक कदम है। इसके जरिए कंपनियों की ओर से राजनीतिक दलों को असीमित फंडिंग का रास्ता खुला।
@ निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है।
@ SBI राजनीतिक दलों का ब्योरा दे, जिन्होंने 2019 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है।
@ SBI राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे।
@ SBI सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस निर्णय पर मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कहा जाता है कि चीफ जस्टिस ने कहा, 'पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है।' CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसे लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और CPM शामिल है। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी। 2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रखने के ठीक 4 दिन बाद 6 नवंबर को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी 29 ब्रांचों के जरिए इलेक्टोरल बॉन्ड इश्यू किए थे। 6 नवंबर से 20 नवंबर तक इश्यू किए गए बॉन्ड्स में 1000 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा दिया गया।
क्या है पूरा मामला
रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
इन महत्वपूर्ण बिंदुओं से भी फैसले को समझें
@ राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
@ कंपनी एक्ट में संशोधन मनमाना और असंवैधानिक कदम है। इसके जरिए कंपनियों की ओर से राजनीतिक दलों को असीमित फंडिंग का रास्ता खुला।
@ निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है।
@ SBI राजनीतिक दलों का ब्योरा दे, जिन्होंने 2019 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है।
@ SBI राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे।
@ SBI सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे।