खेतों में की मजदूरी, घरों में मांजे बर्तन और अब "IPS ऑफिसर", उत्तर प्रदेश की इलमा अफरोज का गांव से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक का कामयाब सफर - khabarupdateindia

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खेतों में की मजदूरी, घरों में मांजे बर्तन और अब "IPS ऑफिसर", उत्तर प्रदेश की इलमा अफरोज का गांव से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक का कामयाब सफर



Rafique Khan
मेहनत के आगे सारी मुश्किलें टूट कर गिर ही जाती हैं। अक्सर इसी तरह की प्रेरणादाई बातों को सुनते चले आए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की इलमा अफरोज की कहानी इसे पूरी तरह साबित भी कर रही है। दरअसल इलमा अफरोज एक बहुत ही गरीब घर की लड़की थी। उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में उसका परिवार रहता था। पिता को कैंसर हो जाने से माली हालत और भी खराब हो गई थी। पिता का साथ छूट भी गया, तब भी परिवार की इलमा अफरोज ने हिम्मत नहीं हारी। खेतों पर काम किया। लोगों के घरों में जाकर बर्तन मांझे और फिर उस छोटे से गांव कुंदरकी से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक का सफर तय किया। आज वह एक आईपीएस ऑफिसर है। इतनी बड़ी कामयाबी निश्चित तौर पर अपने करियर की खातिर मेहनत करने में जुटे लोगों के लिए बहुत अधिक हौसला प्रदान करने वाली है।

कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कस्बे कुंदरकी का नाम शायद कोई जानता भी नहीं था, तब तक, जब तक वहां की बेटी इल्मा अफरोज़ ने अपने गांव का नाम रोशन नहीं कर दिया। अचानक से लोग जानने लगे कि कुंदरकी भी कोई जगह है क्योंकि आईपीएस ऑफिसर बनकर देश की सेवा का सपना देखने वाली इल्मा वहीं से हैं। इल्मा की बुनियादी शिक्षा-दीक्षा देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि यह लड़की दिल्ली के स्टीफेन्स कॉलेज से लेकर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और न्यूयॉर्क तक जा सकती है।

पिता के देहांत के समय इल्मा 14 वर्ष की थी

कहा जाता है कि इल्मा और उनके खुशहाल परिवार को नज़र तब लगी जब उनके पिता का असमय देहांत हो गया। उस समय इल्मा 14 वर्ष की थी और उनका भाई उनसे दो साल छोटा। इल्मा की अम्मी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? लोगों ने सलाह दी कि लड़की को पढ़ाने में पैसे बर्बाद न करके इसकी शादी कर दें, बोझ कम हो जाएगा। इल्मा कक्षा एक से हमेशा अव्वल आती थी। ऐसे में उनका पढ़ाई के प्रति रुझान मां से छिपा नहीं था। उनकी मां ने दहेज के लिए पैसा इकट्ठा करने की जगह उस पैसे से बेटी को पढ़ाया। इल्मा भी पारिवारिक हालात से बहुत अच्छी तरह वाकिफ थी, इल्मा की पूरी हायर स्टडीज़ स्कॉलरशिप्स के माध्यम से ही हुयी हैं।

मां ने खूब खरी-खोटी सुनी, बेटी हाथ से निकल जायेगी

कहा जाता है कि इल्मा अपने सेंट स्टीफेन्स में बिताए सालों को जीवन का श्रेष्ठ समय मानती हैं, जहां उन्होंने बहुत कुछ सीखा. हालांकि बेटी को दिल्ली भेजने के कारण उनकी मां ने खूब खरी-खोटी सुनी कि बेटी हाथ से निकल जायेगी। सेंट स्टीफेन्स के बाद इल्मा को मास्टर्स के लिये ऑक्सफोर्ड जाने का अवसर मिला। इल्मा यूके में अपने बाकी खर्चें पूरे करने के लिये कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही थी, कभी छोटे बच्चों की देखभाल का काम करती थी. यहां तक कि लोगों के घर के बर्तन भी धोये।

नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है


कहा जाता है कि न्यूयॉर्क से वापस आने के बाद इल्मा के मन में यूपीएससी का ख्याल आया. उनके भाई ने उन्हें इसके लिये प्रेरित किया। इल्मा कहती हैं, जब वे गांव वापस आती थी तो गांव के लोगों की आंखों में एक अलग ही चमक होती थी। उन्हें लगता था बेटी विलायत से पढ़कर आयी है, अब तो सारी समस्याएं खत्म कर देगी। इल्मा को भी लगा की यूपीएससी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके द्वारा वे अपना देश सेवा का सपना साकार कर सकती हैं।इल्मा ने साल 2017 में 217वीं रैंक के साथ 26 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जब सर्विस चुनने की बारी आयी तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने पूछा भारतीय विदेश सेवा क्यों नहीं तो इल्मा बोली, नहीं सर मुझे अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिये ही काम करना है।