CJI बोले- "जमानत नियम है और जेल अपवाद" इस सिद्धांत पर पूरे भारत की जिला अदालतों को फोकस करना होगा, ताकि बना रहे नागरिकों का विश्वास - khabarupdateindia

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CJI बोले- "जमानत नियम है और जेल अपवाद" इस सिद्धांत पर पूरे भारत की जिला अदालतों को फोकस करना होगा, ताकि बना रहे नागरिकों का विश्वास


Rafique Khan
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने जिला अदालतो की कार्य प्रणाली को रेखांकित करते हुए चिंता व्यक्त की कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है, मगर यह सिद्धांत पूरे भारत में कमजोर हो रहा है। इस सिद्धांत के तहत जिला अदालतो को काम करना चाहिए, ताकि नागरिकों का भरोसा अदालतो के प्रति बना रहे। सीजीआई ने इस बात की जांच करने के लिए कहा कि जिला अदालतें नागरिकों की निजी आजादी को कायम रखने में अनिच्छुक क्यों लगती है? जिला जजों को जमानत देने में झिझक क्यों महसूस होती है? जमानत के मामलों को टालने की कोशिश क्यों की जाती है? यह भी कहा कि ऐसी आशंका बढ़ती जा रही है कि निजी आजादी से जुड़े मामलों में जिला अदालत में अंकुश लगा हुआ है। जिला अदालतो के जरिए जमानत के नियम का महत्व घटाया जा रहा है। इस मामले में न सिर्फ जिला न्यायालयों को बल्कि उनकी निगरानी करने वाली उच्च न्यायालय को गहन मूल्यांकन करने की परंपरा को स्थापित करना होगा।

गुजरात के कच्छ में जिला न्यायाधीशों की एक राष्ट्रव्यापी सभा में अपना महत्वपूर्ण तथा गरिमा में उद्बोधन देते हुए CJI ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए इस प्रवृत्ति को उलटने की दिशा में जिला न्यायाधीशों को सकरी ए तथा उत्साहित होकर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। ‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि ‘सभी जिला जजों को मुझे बताना चाहिए कि यह प्रवृत्ति क्यों उभर रही है? सीजेआई ने अपने भाषण में भारत में जिला अदालतों के सामने आने वाले मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।

मामलों को स्थगित करना अब सामान्य हो गया

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिला अदालतों को लगातार विकसित करना होगा ताकि नागरिकों का भरोसा बना रहे। इससे जुड़ी प्रमुख चिंताओं में से एक जिला अदालतों के बुनियादी ढांचे को विकसित करना है। वहां अदालत के बढ़िया कमरें हों, क्योंकि कई अदालतों में भीड़भाड़ होती है और मामले दाखिल करने में देरी होती है। पेंडिंग मामलों की बड़ी संख्या पर उन्होंने कहा कि आम आदमी को लगता है कि ऐसी संस्कृति न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि मामलों को स्थगित करना अब सामान्य हो गया है। कल्पना कीजिए कि हममें से कोई एक डॉक्टर के पास जा रहा है और डॉक्टर कह रहा है कि वह आज इलाज नहीं करेगा। अक्सर किसानों के जीवनकाल में कानूनी फैसले सामने नहीं आते। हमें न्यायिक परिणाम के इंतजार में अपने नागरिकों के मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए।

बुनियादी सुविधाओं की कमी पर भी नाराजगी

सीजेआई ने कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं की कमी पर भी नाराजगी जाहिर की।चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘केवल 6 प्रतिशत जिला अदालतों में महिलाओं के अनुकूल सैनिटरी वेंडिंग मशीनें हैं। मुझे बताया गया है कि महिला सिविल जज अक्सर सुबह 9 बजे और शाम 6 बजे वॉशरूम का उपयोग करती हैं, क्योंकि उन्हें विचाराधीन कैदियों के पास से गुजरना पड़ता है।

अधिकारों के साथ किसी भी तरह की चूक नहीं होना चाहिए


इस मौके पर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के साथ जस्टिस संजीव खन्ना भी मौजूद थे। जस्टिस संजीव खन्ना नवंबर 2024 में डी वाई चंद्रचूड़ की जगह लेकर भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। जस्टिस खन्ना ने कहा कि नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा में अधिक सक्रिय रुख अख्तियार करने वाले जिला न्यायाधीशो को बहुत कुछ समझने और बदलने की जरूरत है। जस्टिस खन्ना ने अग्रिम जमानत या जमानत आवेदनों का निर्णय लेने से पहले अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपो की आलोचनात्मक जांच की वकालत भी की। जस्टिस खन्ना ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी की आलोचनात्मक जांच के जरिए यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतंत्रता से अन्यायपूर्ण समझौता तो नहीं किया जा रहा है। जस्टिस खन्ना के उद्बोधन का भी फोकस यही था कि न्यायालय पहुंचने वाले आम जनों के अधिकारों के साथ किसी भी तरह की चूक नहीं होना चाहिए।