जगह-जगह बिखरे पड़े डायनासोर के अंडे, सालों से लोग भगवान मानकर कर रहे पूजा, कई परिवारों ने कुल देवता भी बना लिया - khabarupdateindia

खबरे

जगह-जगह बिखरे पड़े डायनासोर के अंडे, सालों से लोग भगवान मानकर कर रहे पूजा, कई परिवारों ने कुल देवता भी बना लिया





Rafique Khan


मध्य प्रदेश के धार जिला अंतर्गत ग्राम पाडल्या तथा उसके आसपास के कई क्षेत्रों में करोड़ों साल पुराने डायनासोर के अंडे बिखरे पड़े हुए हैं। लोग इन्हें गोलाकार पत्थर समझ कर तरह-तरह से उपयोग करते चले आ रहे हैं। अधिकांश लोगों ने अलग-अलग भगवान का रूप भी ने दे दिया है। कुछ परिवारों के लिए यह डायनासोर के अंडे कुल देवता भी बन गए हैं। बाकायदा इनकी पूजा भी हो रही है और यहां तक की मन्नत मुरादों के चक्कर में बलि तक चढ़ाई जा रही है। पाडल्या में डायनासॉर फॉसिल्स जीवाश्म का अथाह संग्रह है। हालांकि अब जल्द ही साढे 6 करोड़ साल पुराने इन अंडों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की तैयारी चल रही है।

जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि धार जिले के बाग स्थित डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने ईको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड ने ड्राफ्ट तैयार किया है। बोर्ड विश्व विरासत सूची के साथ पार्क को देश की पहली यूनेस्को ग्लोबल जियो पार्क सूची में शामिल कराने कोशिश भी कर रहा है। यह क्षेत्र एशिया का सबसे पुराना डायनासोर जीवाश्म स्थल है।

यहां 256 अंडे के जीवाश्म मिल चुके


बताया जाता है कि 2011 में डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था। ट्यूरोनियन काल में ये भूभाग समुद्र का हिस्सा हुआ करता था। यहां मान नदी घाटी में विलुप्त 6 तरह की शॉर्क के दांतों के अवशेष मिल चुके हैं। इससे भी पूर्व के युग के मगरमच्छ नुमा जीव के कंकाल के हिस्से भी मिले हैं। साथ ही मांसाहारी डायनासोर के 6.50 करोड साल पुराने अंडे भी पाए गए। ये स्थान उनके लिए अंडे देने के सबसे सुरक्षित स्थानों में से एक था। यहां 256 अंडे के जीवाश्म मिल चुके हैं। जीवाश्म बनते हुए अंडे कई लेयर में जुड़ते गए।

विशेषज्ञों ने किया इस बात का खुलासा


जानकारी के अनुसार खास बात यह है कि इन गोलाकार पत्थरों को गांव के लोग देवता मानते हैं। इन अंडों की बाकायदा विधिविधान से पूजा भी करते हैं। कुछ जगहों पर तो इन्हें कुल देवता का दर्जा तक दे दिया गया। लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के विशेषज्ञों ने इस बात का खुलासा किया है। विशेषज्ञों ने गांववालों को बताया कि डायनासोर के अंडों के जीवाश्म हैं। डायनासोर की प्रजाति टायटेनोसारस के अंडे पाडल्या गांव और आसपास पाए गए हैं। गांव में ये मान्यता चल पड़ी थी कि इससे कुल देवता उनकी फसल, मवेशियों और समाज की रक्षा करेंगे। लेकिन लखनऊ से पहुंची वैज्ञानिकों की टीम ने जब इसकी जांच की, तो पूजा किया जाने वाला पत्थऱ डायनासोर का अंडा निकला।