"भूतों का मेला" : 400 साल से लगातार हो रहा है आयोजन, देशभर से आते हैं पीड़ित, वैज्ञानिक युग में आस्था और अंधविश्वास भारी - khabarupdateindia

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"भूतों का मेला" : 400 साल से लगातार हो रहा है आयोजन, देशभर से आते हैं पीड़ित, वैज्ञानिक युग में आस्था और अंधविश्वास भारी



Rafique Khan

विज्ञान के इस आधुनिक युग में भूत-प्रेतों का मायावी संसार आज भी रहस्य का विषय बना हुआ है। आज भी लोग आत्मा, भूत-प्रेतों के अस्तित्व को लेकर सकारात्मक सोच रखते है तो ऐसा मानने वालों की तादाद भी कम नहीं है जो इसे कोरी कपोल कल्पना मानते है। मध्य प्रदेश के बैतूल से 40 किलोमीटर दूर स्थित गुरु साहब बाबा की समाधि स्थल मलाजपुर मे मलाजपुर एक ऐसा स्थान है, जहां पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता चला आ रहा है। यहां देशभर से तरह-तरह की वैरायटी के भूत-प्रेत पीड़ित पहुंचते हैं और दावा किया जाता है कि बड़ी संख्या में लोग ठीक होकर जाते हैं। इस मेले का उद्घाटन प्रदेश सरकार के मंत्री नारायण सिंह पवार ने किया है। भूतों का यह मेला लगातार एक माह तक चलेगा। गुरु साहब बाबा विक्रम संवत 1700 के काल के थे, जिनकी समाधि विक्रम संवत 1770 से भूत प्रेत आबाद किए हुए हैं।

अपने तरह के इस अजीबोगरीब मेले के बारे में मिली जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि मानसिक रोगियों का इलाज बाल खींचकर और झाड़ू मारकर होता है। मेले में प्रेत बाधा से पीड़ित, निसंतान दंपती और सर्पदंश से पीड़ित मरीज आते हैं। गुरु साहब बाबा की समाधि की परिक्रमा लगाने के बाद समाधि के सामने पहुंचते हैं और उनके शरीर में हलचल होने लगती है। मेले में बड़ी संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालु इसे अंधविश्वास नहीं बल्कि आस्था मानते हैं। इस मेले में देश के कोने कोने से वे लोग आते है जो प्रेत बाधा से पीड़ित होते है। उनका कही ईलाज नहीं हो पाता लेकिन यहां आकर उन्हें आराम जरुर मिलता है। प्रेत बाधा के अलावा यहां सर्पदंश से मुक्ति भी मिलती है। यही नहीं यहां निसंतान दम्पति संतान प्राप्ति की इच्छा से आते है और अपनी मनोकामनाएं पूरी कर वापस लौटते है।

चरणामृत और भभूती भी दी जाती है

जानकारी के मुताबिक मेले में बैठे पुजारी महिला मरीजों के बाल खींचकर पूछते हैं कि कौन सी बाधा है। उसके बाद गुरु साहब का जयकारा लगाते हैं। कई मरीजों को तो झाड़ू मारी जाती है। इसके बाद उन्हें चरणामृत और भभूत दी जाती है। मरीजों के परिजनों को लगता है कि उसका मरीज ठीक हो गया है, इसलिए लोगों का यहां विश्वास बढ़ता जा रहा है। लोग इस तरह से हो रहे इलाज को गुरु साहब बाबा की महिमा मानते हैं। जिसे आराम लगता है, उसे पूरा विश्वास हो जाता है। चिकित्सा विज्ञान इसे पूरी तरह से अंधविश्वास मानता है। मध्य प्रदेश शासन के मंत्री नारायण सिंह पंवार ने कहा कि आस्था और अंधविश्वास दोनों है, लेकिन हम अंधविश्वास नहीं कह सकते हैं। आस्था ही कह सकते हैं। आस्था के कारण लोग यहां आते हैं। उदाहरण भी दिया पहले के समय लोग झाड़ फूंक से ठीक हो जाते थे। मंत्री ने फिर आगे कहा कि दवा और दुआ दोनों काम करती है।

कुछ इस तरह के मंजर दिखाई देते हैं


मुझे मेरे घर जाना है। मुझे घर जाना है। मुझे चाकलेट खाना है। मुझे छोड़ दो। अब तो तंग मत करो। मैं नहीं सताऊंगा। 36 साल की महिला के मुंह से 6 साल के बच्चे की आवाज में निकल रहे यह शब्द कुछ और नहीं प्रेत बाधा की वह मिसाल है। जो बैतूल के मलाजपुर में नजर आए है। चीख, पुकार, हिलोरे लेते पीड़ित और उस पर समाधि के पास उनसे करवाए जाते कुबूल नामे से साफ है कि प्रेतों का भी मायावी संसार होता है। आस्था पर भारी पड़ते अंधविश्वास की छाया और विज्ञान को चुनौती देते दृश्य इस समाधि पर अजीब मंजर पेश करते है।

लातो के भूत बातो से नहीं मानते

कहा जाता है कि लातो के भूत बातो से नहीं मानते। ये कहावत सोलह आने सच साबित होती है बैतूल के गांव मलाजपुर में जहां पिछले 400 सालों से भूतों का मेला लगता है। जहां तरह-तरह के भूत आते है… और लातों के ये भूत वहां खाते है मार ….ऐसी मार जिसे देखने वाले दहल जाते है तो मार खाने वाले भूतों को सर पर पैर रखकर भागने को मजबूर होना पड़ता है।


गुरु साहब बाबा ने जीवित समाधि ली थी

जानकारी के मुताबिक यहां देश के कई प्रदेशों से लोग पहुंचते है। विक्रम संवत 1770 श्रावण चौथ से लग रहे इस मेले की हकीकत के बारे में विनय मालवीय बताते है कि इस तिथि को गुरु साहब बाबा ने यहां प्राणायाम की मुद्रा में जीवित समाधी ले ली थी। उदयपुर के कुशवाहा वंश के बंजारा परिवार में 1727 को जन्मे देवजी का रहन-सहन, खाने-पीने का ढंग बचपन से ही अजीब गरीब था। मवेशी चराते देवजी अपने साथी चरवाहा बालकों को रेत से शक्कर और पत्थर से मिठाई बनाकर खिलाया करते थे। अपने नेत्रहीन गुरु की आंखों की रौशनी वापस लाने के बाद देवजी को उनके गुरु ने गुरु साहब यानी गुरु से भी बड़े की संज्ञा देते हुए गुरु साहब कहकर बुलाया था। तब से वे गुरु साहब कहलाने लगे।बाबा के समाधि लेने के बाद से ही लोग यहां मनौतिया लेकर पहुंचते रहे है। यहां असामान्य महिला-पुरुष समाधि के उलटे परिक्रमा लगाता है। शाम को आरती के बाद यहां शुरु होता है सवाल-जवाब का सिलसिला समाधि पर पहुंचते ही कसमें खाकर ग्रस्त व्यक्ति उस पर सवार शय की हकीकत बयान करने लगता है। मनोकामना पूर्ण होने पर भारी मात्रा में यहां तुलादान व चढ़ोतरी स्वरूप गुड़ व शक्कर चढ़ाया जाता है। इसके बावजूद पूरे समाधि परिसर में मक्खी व चीटियां नहीं पाई जाती। इसे बाबा का ही चमत्कार माना जाता है।