Rafique Khan
शहर में विकास हो रहा है, बड़ी खुशी की बात है। फ्लाई ओवर ब्रिज बन रहा है, बड़ी अच्छी बात है। विकास के और भी बहुत सारे काम चल रहे हैं, कुछ नजर आ रहे हैं तो कुछ नजरों से ओझल है। विकास की इस रफ्तार, विकास की इस अंधाधुंध चकाचौंध में समस्याओं को पूरी तरह से दफन करके रख दिया गया है। ऐसा लगता है जैसे अब समस्याओं का कहीं कोई स्थान ही नहीं रह गया है। जाम लग रहा है तो लगने दो, लोग परेशान हो रहे हैं तो होने दो, कहीं सड़क बंद है तो रहने दो, आदि - आदि... समस्याओं से शहर के किसी कर्णधार को कोई लेना देना नहीं है। पिछले एक हफ्ते से कछपुरा माल गोदाम चौक रेलवे क्रॉसिंग से लेकर लेबर चौक तक और विजयनगर की ओर मुड़ने वाले रास्ते में उखरी तिराहे तक ब्लू डस्ट फैली हुई है। उसका गुबार लगातार लोगों को हलाकान कर रहा है। वहां से गुजरने वाले लोगों को और खास तौर से अस्थमेटिक मरीजों को कितनी तकलीफ उठाना पड़ रही होगी, वही जानते हैं। मुख्य मार्ग पर किलोमीटरो में ब्लू डस्ट की उड़ती गुबार किसी जिम्मेदार को नजर नहीं आ रही...कितनी शर्म की बात है। हद तो तब हो गई जब शहर के लीडिंग अखबार दैनिक भास्कर में बाकायदा इसे एक बड़ी खबर के रूप में गुरुवार के अंक में प्रकाशित किया, उसके बाद भी किसी ने कोई सुध नहीं ली। स्वतः कोई बात संज्ञान में नहीं आ पाई हो तो सहजता से लिया जा सकता है लेकिन शहर का एक जिम्मेदार अखबार अगर उस समस्या को पूरे फोकस के साथ सामने रख रहा है, तब भी ऐसी उदासीनता समस्या परे है। मतलब यह है कि हमारे शहर की व्यवस्थाओं को देखने वाले जिम्मेदारों का माद्दा इतना भी नहीं रह गया है कि वह यहां फैली ब्लू डस्ट को जनता की तकलीफ की खातिर हटा सके। या फिर बेशर्मी की इंतेहा है।