रफीक खान
दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत अर्जी का विरोध करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में 177 पन्नों की हलफिया रिपोर्ट पेश की है। हलफनामे के साथ पेश की गई इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली का दंगा आकस्मिक आक्रोश नहीं बल्कि एक संगठित और सुनिश्चित रिज्यूम चेंज ऑपरेशन के रूप में किया गया। सरकार का तख्ता पलट करने, भारत की संप्रभुता को कमजोर करने के मकसद से यह घटना की गई। जो उत्तर प्रदेश असम पश्चिम बंगाल केरल और कर्नाटक राज्य में भी दोहराई गई। दिल्ली पुलिस का दावा है कि दस्तावेजों के तकनीकी सबूत और आंखों देखी चीजों से साबित होता है कि दंगे पूरी तरह सांप्रदायिक आधार पर अंजाम दिए गए। The 177-page opposition to the bail application described the violence as a conspiracy, not a spontaneous outburst.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जाता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले उमर खालिद और शरजील इमाम को सीएए विरोध के शुरुआती आयोजकों में गिना था। दिसंबर 2019 से ही उन्होंने भाषण, पर्चे और व्हाट्सएप नेटवर्क के जरिए भीड़ जुटाई, जो बाद में हिंसा में बदल गई. कोर्ट ने कहा था कि दंगे के समय मौके पर न होना उन्हें बरी नहीं करता, क्योंकि साजिश हिंसा से बहुत पहले रची गई थी। पुलिस ने उन्हें साजिश के बौद्धिक वास्तुकार बताया है, जबकि आरोपी दावा करते हैं कि उनका विरोध संवैधानिक अधिकारों के दायरे में था और हिंसा से कोई संबंध नहीं था। फरवरी 2020 में सीएए को लेकर हुए टकराव में 53 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। इस मामले में अब आरोपी जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पहुंच गए हैं। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई होना है। जिसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत एक बड़ी टीम जमानत फर्जी पर विरोध करेगी। इसका मुख्य आधार दिल्ली पुलिस की यही 177 पन्नों की रिपोर्ट होगी।
