रफीक खान
भारतीय सेना के एक अफसर को सुप्रीम कोर्ट ने निहायत ही अनुशासनहीन तथा मिसफिट करार दिया। गुरुद्वारा जाने से मना करने पर उसे सेना द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था। सेना की इस कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट ने समर्थन करते हुए सही ठहराया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह आचरण किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है। भारतीय सेना अपनी सेकुलर परंपराओं और अनुशासन के लिए जानी जाती है। इस सैन्य अफसर ने अपने ही जवानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। आपको धार्मिक अहंकार इतना अधिक कि दूसरों की परवाह ही नहीं थी?
The court declared the army officer to be a quarrelsome and misfit for the service, admitting serious indiscipline.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जाता है कि अफसर सैमुअल कमलेसन का मामला मार्च 2017 से जुड़ा है, जब वे 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने। उनकी यूनिट में मंदिर और गुरुद्वारा था, जहां हर हफ्ते धार्मिक परेड होती थी। वे अपने सैनिकों के साथ वहां तक जाते थे, लेकिन मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में पूजा, हवन या आरती के दौरान जाने से मना करते थे। उनका कहना था कि उनकी ईसाई मान्यता इसकी अनुमति नहीं देती और उनसे किसी देवी-देवता की पूजा करवाना गलत है। अफसर का आरोप था कि एक कमांडेंट लगातार उन पर दबाव डालता था और इसी वजह से मामला बढ़ा। दूसरी ओर सेना ने कहा कि उन्होंने कई बार समझाने के बाद भी रेजिमेंटल परेड में पूरी तरह हिस्सा नहीं लिया, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है। लंबे समय तक चली जांच और सुनवाई के बाद उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मंगलवार को सैमुअल कमलेसन नाम के एक क्रिश्चियन आर्मी अफसर को फटकार लगाई, जिसे गुरुद्वारे जाने से मना करने पर सेना ने बर्खास्त कर दिया था। कोर्ट ने अफसर को झगड़ालू और आर्मी के लिए मिसफिट करार दिया। सुप्रीम कोर्ट से पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मई में सेना के फैसला को सही ठहराया था। हाईकोर्ट ने माना था कि अफसर के व्यवहार से रेजीमेंट की एकजुटता, अनुशासन और सेक्युलर मूल्यों को नुकसान पहुंचा। कोर्ट ने सेना में ऐसे व्यवहार को युद्ध स्थितियों में नुकसानदेह बताया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कमलेसन ने अपने सीनियर अफसरों के आदेश से ऊपर अपने धर्म को रखा। यह स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है।अफसर सैमुअल कमलेसन की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उन्हें सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाला गया क्योंकि उन्होंने अपने पोस्टिंग वाले मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में जाने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आप चाहे कितने ही अच्छे अफसर हों, लेकिन आप सेना में अनुशासन नहीं रख पाए, तो इसका मतलब है कि आप अपने ही सैनिकों की भावनाओं का सम्मान करने में असफल रहे। गुरुद्वारा सबसे अधिक सेक्युलर (सार्वभौमिक) जगहों में से एक माना जाता है। जिस तरह वह व्यवहार कर रहे हैं, क्या यह दूसरे धर्मों का अपमान नहीं है? अनुच्छेद 25 सिर्फ मूल धार्मिक प्रथाओं की रक्षा करता है लेकिन हर भावना धर्म नहीं होती। सेना का अनुशासन सर्वोपरि है। लीडर्स तो उदाहरण पेश करते हैं। एक कमांडिंग अफसर होने के नाते उनसे उम्मीद थी कि वे अपने सैनिकों की एकजुटता और मनोबल को प्राथमिकता देंगे।
