रफीक खान
भारत की सर्वोच्च न्यायालय यानी कि सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के 45वें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा पूर्व में किया गया एक फैसला इन दिनों न्यायिक जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है। सिंगापुर की न्यायिक कार्रवाई के दौरान इस फैसले में खुलासा यह हुआ कि दीपक मिश्रा की बेंच द्वारा जो 451 पैराग्राफ का निर्णय पारित किया गया था, उसमें 212 पैराग्राफ कॉपी पेस्ट थे। इस सनसनीखेज स्थिति का अवलोकन करने के बाद सिंगापुर में फैसले को खारिज कर दिया गया और सिंगापुर की सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अमान्य कर दिया। In the decision of former CJI Deepak Mishra's bench, 212 out of 451 paragraphs were copy paste, revealed in Singapore, rejected
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जाता है कि सिंगापुर हाई कोर्ट इंटनेशनल कॉमर्शियल कोर्ट ने उक्त मामले में कंटेंट्स पर सवाल उठाते हुए निर्णय दिया था। उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी, लेकिन उसने भी फैसले के बरकरार रखा है। सिंगापुर के चीफ जस्टिस सुंदरेश मेनन और जस्टिस स्टीवन चोन्ग की बेंच ने कहा, 'ऐसा ही फैसला अन्य मामलों में भी दिया गया था। यही कॉन्टेंट भी इस्तेमाल किया गया था। इस बात में कोई दो मत नहीं है कि पहले दिए गए फैसलों की सामग्री उठाकर 212 पैरे डाले गए हैं, जबकि कुल फैसला ही 451 पैराग्राफ में है। इस तरह 47 फीसदी सामग्री कॉपी पेस्ट वाली है। इसका बड़ा असर पड़ सकता था। यह मामला स्पेशल पर्पज वीकल मैनेजिंग फ्राइट कॉरिडोर और तीन अन्य कंपनियों के समूह के बीच विवाद को लेकर था।
यह है पूरा मामला
कहा जाता है कि 2017 में भारत सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें न्यूनतम वेतन बढ़ाने का फैसला लिया था। यह वेतन तीन कंपनियों को देना होता। इस पर कंपनियों ने ऐतराज जताया तो मामला अदालत पहुंच गया। हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद इस केस को ट्राइब्यूनल के हवाले किया गया। इस ट्राइब्यूनल बेंच के मुखिया चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे। उनके अलावा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज जस्टिस कृष्ण कुमार लाहोटी तथा जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गीता मित्तल भी इसमें शामिल थे। इस बेंच ने तीन कंपनियों के कंसोर्टियम के पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन ट्राइब्यूनल के इस आदेश को सिंगापुर हाई कोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी गई कि पहले को दो फैसलों से इसके एक हिस्से को कॉपी किया गया है।
पहले के फैसलों में भी मिश्रा ही थे
यह भी कहा जा रहा है कि पहले के जिन दो फैसलों से कॉन्टेंट को कॉपी करने का आरोप लगा है, उन्हें भी दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली ट्राइब्यूनल बेंच ने ही दिया था। हालांकि उन बेंचों में दो अन्य जज शामिल नहीं थे, जो इसका हिस्सा बने। इस पर हाई कोर्ट कहना था कि यह तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। बेंच ने कहा कि ऐसा करके तो ट्राइब्यूनल ने एक तरह से पूरे मामले को समझा ही नहीं। दोनों पक्षों को समझने के बाद यदि फैसला दिया जाता तो फिर इस तरह बड़ा हिस्सा पुराने केसों का कॉपी पेस्ट नहीं होता। फैसले में इस तरह के कॉपी पेस्ट पदार्थ को स्वीकारना न्याय संगत नहीं माना जा सकता।