रफीक खान
इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित होने के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने अपने विदाई समारोह के दौरान जिस अंदाज में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, उसने समूचे सरकारी सिस्टम पर एक बड़ा सवालिया निशान छोड़ दिया है। हालांकि इस बदले हुए परिवेश में यह सब बातें अब अपना महत्व लगातार खोती जा रही है लेकिन फिर भी जाग रहे लोगों में यह आज भी चर्चा का विषय है और चिंतन भी निश्चित तौर पर होगा। शायराना अंदाज शुक्रवार को न सिर्फ न्याय क्षेत्र बल्कि खासतौर से गंभीर सोच रखने वालों में चर्चित रहा। Those who are in power today will not be there tomorrow.
They are tenants, the house is not going away.
विदाई समारोह में बोलते हुए जस्टिस श्रीधरन ने कहा कि ब्रह्मांड में केवल बदलाव ही स्थायी चीज है। इसके बाद उन्होंने शायराना अंदाज में कहा, "जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे।, किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी हैं।।" यह शैर मशहूर शायर राहत इंदौरी का है, जिसका संदर्भ आमतौर पर सत्ता या शासन के खिलाफ माना जाता है। जस्टिस श्रीधरन का सात महीने में तीसरा ट्रांसफर किया गया। मार्च 2025 में उन्हें जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट भेजा गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में उनका ट्रांसफर करने की सिफारिश की। हालांकि, बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के अनुरोध के बाद कॉलेजियम ने उनका ट्रांसफर छत्तीसगढ़ की बजाय इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने की सिफारिश की। रिपोर्ट में बताया गया है कि जस्टिस श्रीधरन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य थे और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में भी इसी पद पर होते। इलाहाबाद हाई कोर्ट में वह वरिष्ठता में सातवें नंबर पर गिने जायेंगे। सामान्य तौर पर किसी भी अधिकारी या न्यायिक अधिकारी का स्थानांतरण एक रूटीन प्रकिया बताते हुए बात खत्म कर दी जाती है। इस बात से इनकार बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता कि जस्टिस श्रीधरन का तबादला अकारण है, जस्टिस श्रीधरन का तबादला अपरिहार्य है, जस्टिस श्रीधरन का तबादला सिस्टम में दखल के खिलाफ है, या फिर जस्टिस श्रीधरन का तबादला किसी बड़े सामंजस्य का हिस्सा है? जस्टिस श्रीधरन खुद एक विद्वान न्यायाधीश है। वह अच्छे और बुरे उचित और अनुचित को बखूबी पहचानते हैं, फिर ऐसी परख रखने वाले को यह शैर क्यों बोलना पड़ा?
