रफीक खान
न्यायिक व्यवस्था में उच्च और उच्चतम न्यायालय की समीक्षा लगातार चलती रहती है और बेहतर से बेहतर सुधार के लिए हमेशा सख्त निर्देश दिए जाते हैं। ऐसा ही एक मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेश को लेकर सामने आया है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा है कि कानपुर नगर में तैनात अपर जिला जज डॉक्टर डी अमित वर्मा निर्णय लिखाने की काबिलियत नहीं रखते हैं अतः उन्हें 3 महीने की ट्रेनिंग पर भेजा जाए। जिला स्तर की न्यायालय में अपर जिला जज एक वरिष्ठ पद lADJ does not have the ability to write judgments, they should be sent for 3 months training, High Court ordered
जानकारी का मतलब कहा जाता है क्या यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने मुन्नी देवी बनाम शशिकला पांडेय की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि एडीजे डॉ. वर्मा आदेश लिखाते समय कारण और निष्कर्ष का उल्लेख नहीं करते। इसी के साथ कोर्ट ने ऐसे ही उनके आदेश को रद्द कर नए सिरे से आदेश करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद फिर वही गलती दोहराई गई। कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से डॉ. वर्मा को प्रशिक्षण पर भेजने के लिए मुख्य न्यायाधीश से आदेश प्राप्त करने को कहा है और कहा कि उन्हें ट्रेनिंग के लिए न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान लखनऊ भेजें। कोर्ट ने जिला जज कानपुर नगर को संबंधित पुनरीक्षण अर्जी किसी अन्य अपर जिला जज को सुनवाई के लिए स्थानांतरित करने का भी आदेश दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार शशिकला पांडेय ने वर्ष 2013 में किराया वसूली व बेदखली का वाद दाखिल किया, जो 29 फरवरी 2024 को याची के विरुद्ध डिक्री हो गया। इसके विरुद्ध याची ने पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की जिसे एडीजे ने सात नवंबर 2024 को खारिज कर दिया।