जज ने खुद को किया सुनवाई से अलग, उच्च न्यायिक अधिकारी के फैसले से सनसनी, कंटेंप्ट का भी मंडरा रहा खतरा - khabarupdateindia

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जज ने खुद को किया सुनवाई से अलग, उच्च न्यायिक अधिकारी के फैसले से सनसनी, कंटेंप्ट का भी मंडरा रहा खतरा


रफीक खान
मध्य प्रदेश के कटनी जिले से विधायक जाने-माने खनन कारोबारी और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के नेता विधायक और पूर्व मंत्री होते हुए अपनी ही सरकार के निशाने पर चल रहे संजय पाठक का एक सनसनीखेज खुलासा हाई कोर्ट के जस्टिस विशाल मिश्रा ने किया है। हाई कोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा ने अपने एक आदेश में यह खुलासा करते हुए स्पष्ट किया है कि उन्हें पूर्व मंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के विधायक संजय पाठक ने कॉल करने की कोशिश की यानी की एप्रोच की। जिसके चलते वह आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा की जा रही जांच संबंधी मामले में होने वाली सुनवाई से खुद को अलग करते हैं। उच्च न्यायक अधिकारी के इस खुलासे के बाद न सिर्फ सनसनी व्याप्त है बल्कि कानूनविदों की नजर में कंटेंप्ट आफ कोर्ट का खतरा भी संजय पाठक के सिर पर मंडरा सकता है। The judge recused himself from the hearing, the decision of the high judicial officer caused a sensation, there is also a threat of contempt

जानकारी के मुताबिक कहा जाता है कि एक याचिका की सुनवाई से इनकार करते हुए एमपी हाईकोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा ने जब उक्त ऑर्डर लिखा तो हाईकोर्ट के वकील और पक्षकार भी सकते में आ गए। ये याचिका बीजेपी विधायक संजय पाठक के परिवार से जुड़ी कंपनियों के अवैध खनन पर कार्रवाई के लिए लगाई गई थी।
मूलत: कटनी निवासी युवक कांग्रेस के नेता आशुतोष दीक्षित ने इस याचिका के जरिए मांग की थी कि शिकायत के बाद भी पाठक की कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। हालांकि, याचिका दायर के कुछ ही दिन बाद खनिज विभाग ने पाठक के परिवार से जुड़ी कंपनियों के खिलाफ 443 करोड़ का जुर्माना लगाया था। आशुतोष मनु दीक्षित ने जून 2025 में हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने पाठक के परिवार से जुड़ी कंपनियों के अवैध खनन से जुड़ी शिकायतें ईओडब्ल्यू में की थी। लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद भी उसमें जांच आगे नहीं बढ़ी। इस केस में पाठक के परिवार की कंपनियों की ओर से इंटर विन एप्लिकेशन लगाई गई थी। मामले में आई ओ ऊ की ओर से एडवोकेट मधुर शुक्ला मौजूद थे। कानून विदों का यह भी मानना है कि इस तरह से सीधे किसी मामले को लेकर जज से अप्रोच करना कांटेम्पट ऑफ कोर्ट के दायरे में भी आ सकता है।